ककरी में महारानी दुर्गावती का 457 वा बलिदान दिवस मनाया गया
अनपरा/सोनभद्र- ब्रहस्पतिवार को आदिवासी वीरांगना महारानी दुर्गावती जी का बलिदान दिवस ककरी बुद्ध मंदिर पर मनाया गया । इस कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री जितेंद्र कुमार गोंड़ और संचालन श्री संभु गोंड़ ने किया कार्यक्रम में सर्व प्रथम महारानी दुर्गावती जी के फोटो पर पुष्पांजलि व माल्यार्पण कर उन्हें याद किया गया । अशोक गोंड़ बलराम गोंड़ जय शंकर गोंड़ आदि वक्ताओं ने महारानी दुर्गावती अमर रहे के नारों के साथ ही महारानी दुर्गावती जी के जीवन इतिहास पर प्रकाश डाला , जिसके तहत ओबरा विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी रहे डॉ रवि गोंड़ बड़कू जी ने कहा कि रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर, 1524 को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल के यहाँ हुआ था। वे अपने पिता की इकलौती संतान थीं।
दुर्गाष्टमी के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।1542 में, 18 साल की उम्र में दुर्गावती की शादी गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े बेटे दलपत शाह के साथ हुई। मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में रहने वाले गोंड वंशज 4 राज्यों पर राज करते थे- गढ़-मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला। दुर्गावती के पति दलपत शाह का अधिकार गढ़-मंडला पर था। रानी दुर्गावती के पास केवल 300 सैनिक बचे थे। रानी को भी सीने और आँख में तीर लगे। जिसके बाद उनके सैनिकों ने उन्हें युद्ध छोडकर जाने के लिए कहा। लेकिन इस योद्धा रानी ने ऐसा करने से मना कर दिया। वह अपनी आखिरी सांस तक मुग़लों से लडती रहीं।
जब रानी दुर्गावती को आभास हुआ कि उनका जीतना असम्भव है तो उन्होंने अपने विश्वासपात्र मंत्री आधार सिंह से आग्रह किया कि वे उसकी जान ले लें ताकि उन्हें दुश्मन छु भी न पाए। लेकिन आधार ऐसा नहीं कर पाए तो उन्होंने खुद ही अपनी कटार अपने सीने में उतार ली।
24 जून 1564 को रानी ने अंतिम सांस ली जिसके बाद से आदिवासी समाज द्वारा इस बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस बलिदान दिवस के अवसर पर डॉ रवि गोंड़ बड़कू जितेंद्र गोंड़ शंभु गोंड़ अशोक गोंड़ जयशंकर प्रसाद गोंड़ बलराम गोंड़ उमेश चंद गोंड़ सुभाष गोंड़ शाक्ति प्रसाद गोंड़ मनीष गोंड़ दयाशंकर गोंड़ रोहित गोंड़ शकुंतला देवी प्रियंका गोंड़ स्वेता गोंड़ आदि मौजूद रहे ।
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