बालश्रम निषेध दिवस: मजबूरी की बीमारी से बचपन की मौत
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 12 जून
मजबूरी की बीमारी से बचपन की मौत
सोनभद्रः आज बाल श्रम निषेध दिवस है। पूरे विश्व में इसे बालकों के अधिकारों और हितों के संरक्षण के दिवस के रूप में जाना जाता है। इसे प्रभावी बनाने के लिए कानून भी बनाए गए हैं लेकिन हकीकत की तस्वीर अभी भी बहुत कुछ उलट है। बाल श्रम को लेकर पहली बार प्रमुखता से कब आवाज़ थी इसको लेकर कब-कब क्या हुआ और विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में स्थित क्या स्थिति है? इसे कड़ियों के रूप में बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार स्तंभकार एवं पत्रकार आचार्य प्रमोद चौबे।
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विश्व शिखर सम्मेलन 1990-
2002 से 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनता है। बच्चों के मसलों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रयास अक्टूबर 1990 में न्यूयार्क के विश्व शिखर सम्मेलन में 151 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने गरीबी, कुपोषण व भुखमरी के शिकार संसार के करोड़ों बच्चों की समस्याओं पर विमर्श किया।
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बच्चों का आसानी से शोषण-
यूनीसेफ के अनुसार बच्चों का नियोजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है। बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है। लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं। और यदि एक परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र आधार ही बाल श्रम हो, तो कोई कर भी क्या सकता है।
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श्रम रोजगार मंत्रालय भारत सरकार
बाल श्रम की समस्या देश के समक्ष अभी भी एक चुनौती बन कर खड़ी है। सरकार इस समस्या को सुलझाने के लिए विभिन्न सकारात्मक सक्रिय क़दम उठा रही है। फिर भी, समस्या के विस्तार और परिमाण पर विचार करते हुए तथा मूलतः यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या होने के कारण, जो विकट रूप से ग़रीबी और निरक्षरता से जुड़ी है, इस समस्या को सुलझाने के लिए समाज के सभी वर्गों द्वारा ठोस प्रयास करने की ज़रूरत है।
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उपलब्ध नहीं नए आंकड़े-
2001 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार 25.2 करोड़ कुल बच्चों की आबादी की तुलना में, 5-14 वर्ष के आयु समूह में 1.26 करोड़ बच्चे काम कर रहे हैं। इनमें से लगभग 12 लाख बच्चे ऐसे ख़तरनाक व्यवसायों/प्रक्रियाओं में काम कर रहे हैं, जो बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम के अंतर्गत आवृत हैं अर्थात् 18 व्यवसाय और 65 प्रक्रियाएँ।
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एनएसएसओ के आंकड़े-
2004-05 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, काम करने वाले बच्चों की संख्या 90.75 लाख होने का अनुमान है।
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गुरूपाद स्वामी समिति की सिफारिश-
1979 में सरकार ने बाल मजदूरी को खत्म करने के उपाय के रूप में गुरूपाद स्वामी समिति का गठन किया। बालश्रम से जुड़े मसलों पर अध्ययन के बाद गुरूपाद स्वामी समिति ने सिफारिश की। गरीबी ही मजदूरी का मुख्य कारण है। खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबंध लगाने, उन क्षेत्रों के कार्य के स्तर में सुधार करने, मजदूर बच्चों के मामले में बहुआयामी नीति की बनाने पर बल दिया।
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सिफारिश पर पहल-
1986 में समिति के सिफारिश पर बाल मजदूरी प्रतिबंध विनियमन अधिनियम बना, जिसमें विशेष खतरनाक व्यवसाय व प्रक्रिया के बच्चों के रोजगार एवं अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्तों का निर्धारण हुआ। सन 1987 में बाल मजदूरी पर विशेष नीति बनी।
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बालश्रम दंडनीय अपराध-
बाल श्रम पर नये कानून को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंजूरी दे दी थी और अब किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा तथा उस पर 50,000 रुपये का अधिकतम जुर्माना लगेगा।
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बाल श्रम निषेध पर कानून-
भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत की विभिन्न अनुच्छेद(धारा)..
धारा 24-
14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जायेगा। न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा।
धारा 39(ई)-
राज्य अपनी नीतियां इस तरह निर्धारित करेंगे कि श्रमिकों, पुरुषों और महिलाओं का स्वास्थ्य व उनकी क्षमता सुरक्षित रह सके। बच्चों की कम उम्र का शोषण न हो। वे अपनी उम्र व शक्ति के प्रतिकूल काम में आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रवेश करें।
धारा 39-(एफ)-
बच्चों को स्वस्थ तरीके से स्वतंत्र व सम्मानजनक स्थिति में विकास के अवसर व सुविधाएं दी जाएंगी। बचपन व जवानी को नैतिक व भौतिक दुरुपयोग से बचाया जायेगा।
धारा 45-
संविधान लागू होने के 10 साल के भीतर राज्य 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रयास करेंगे।
समवर्ती सूची का विषय-
बाल श्रम एक ऐसा विषय है, जिस पर संघीय व राज्य सरकारें, दोनों कानून बना सकती हैं। दोनों स्तरों पर कई कानून बनाये भी गये हैं।
फैक्टरी कानून 1948-
यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गयी है। रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
--------------------------------- बाल श्रम निषेध व नियमन- कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशों और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इन पेशों व प्रक्रियाओं का उल्लेख कानून की अनुसूची में है।
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न्यायिक फैसले-
न्यायिक हस्तक्षेप 1996 में उच्चतम न्यायालय के उस फैसले से आया, जिसमें संघीय व राज्य सरकारों को खतरनाक प्रक्रियाओं और पेशों में काम करने वाले बच्चों की पहचान करने, उन्हें काम से हटाने, उन्हें गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। एक बाल श्रम पुनर्वास सह कल्याण कोष की स्थापना की जाये, जिसमें बाल श्रम कानून का उल्लंघन करनेवाले नियोक्ताओं के अंशदान का उपयोग हो।
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बालश्रम में बचपन नष्ट-
देश के विभिन्न क्षेत्रों में छोटे स्तर पर होटल, घरों व फैक्ट्री में काम कर या अन्य व्यवसाय में मजदूरी कर हजारों बाल श्रमिकों का बचपन नष्ट हो रहा है। उन्हें किसी कानून की जानकारी नहीं है और न ही पेट पालने का कोई रास्ता। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, आंध्रप्रदेश, आसाम, त्रिपुरा सहित संपूर्ण भारत में बाल श्रमिक कालीन, दियासलाई, रत्न पॉलिश व जवाहरात, पीतल व कांच, बीड़ी उघोग, हस्तशिल्प ,सूती होजरी, नारियल रेशा, सिल्क, हथकरघा, कढ़ाई, बुनाई, रेशम, लकड़ी की नक्काशी, पत्थर की खुदाई, स्लेट पेंसिल, चाय के बागान और बाल वैश्यावृत्ति आदि में फंसे हुए हैं। पढ़ाई से दूर बाल श्रमिक नशे में जकड़े हुए और बीमारियों की गिरफ्त में है।
---------------------------------- बचपन लौटाने का भागीरथी प्रयास-
गैर शैक्षणिक कार्यों से शिक्षकों को अलग किये बिना बच्चों को शिक्षित करना मुश्किल है। प्राथमिक से विश्वविद्यालयीय स्तर तक अपनी-अपनी कहानी है। 14 वर्ष तक के बच्चों का दायित्व प्राथमिक और उच्च प्राथमिक या पूर्व माध्यमिक पर है। सरकारी शिक्षक गैर शैक्षिणिक कार्यों में सत्र भर उलझे रहते हैं। गणना में जन, मत, पशु, पक्षी आदि की यहीं शिक्षक करते हैं। अघोषित बहुउद्देशीय कर्मी बने शिक्षक पढ़ाने के सिवा भवन निर्माण, मिड-डे-मिल, बच्चों की साफ-सफाई, गैर जरूरी प्रशिक्षण आदि में उलझे रहते हैं। शिक्षण तक शिक्षकों को सीमित कर 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराई जा सकती है, अन्यथा 14 वर्ष तक के शिक्षा का मौलिक अधिकार संविधान के पन्नों में बना रहेगा। हम सब मिलकर संकल्प करें कि आस-पास के बच्चों को पढ़ने में मददगार बनेंगे। उनका बचपन उन्हें लौटाने में भागीरथी प्रयास करेंगे।
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लेखक से यहां कर सकते हैं संपर्क।
---------------------------------- आचार्य प्रमोद चौबे
स्तम्भकार व प्रवक्ता
"गुरुधाम" श्रीराम नगर खैरटिया निकट सेक्टर नौ (बी) ओबरा सोनभद्र
मो.9415362474
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