SPECIAL REPORT: शक्तिनगर क्षेत्र में मौत के कई पहाड़, खतरे के मुहाने पर हैं 18000 ग्रामीण, 2012 में ही डीएम ने एनसीएल को दिया था ग्रामीणों को सुरक्षित करने के निर्देश
सोनभद्र। एनसीएल के ओवरवर्डेन के पहाड़ वर्षों से शक्तिनगर और इससे सटे सिंगरौली परिक्षेत्र के गांवों के लिए मुसीबत बने हुए हैं। बारिश के समय कभी दुद्धीचुआ कोल परियोजना की ओबी तबाही मचाती है तो कभी खड़िया परियोजना की ओबी का ढहाव ग्रामीणों में हायतौबा मचा देता है। सिंगरौली से भी ओवरवर्डेन ढहने की खबर आती रहती है। वर्ष 2012 में तत्कालीन डीएम सुहास एलवाई की पहल पर प्रशासन और एनसीएल तथा एनटीपीसी प्रबंधन के बीच चिल्काटांंड़ के मसले को लेकर गहन चर्चा हुई थी और सहमति भी बनी थी कि ओबी के इर्द-गिर्द रह रहे लोगों को दूसरी जगह सुरक्षित बसाया जाए। इसको लेकर डीएम की तरफ से निर्देश भी जारी हुए थे लेकिन उनके तबादले के साथ ही इसको लेकर चल रही कवायद वहीं थम गई। चिल्काटाड़ गांव वैसे आता तो है सोनभद्र जिले में, लेकिन इससे सटा परिक्षेत्र मध्य प्रदेश का सिंगरौली लगता है। ग्रामीण बताते हैं कि वर्ष 1977 में जब एनटीपीसी की मदर यूनिट की शक्ति नगर में स्थापना की गई तो वहां के लोगों को चिलकाटाड़ में विस्थापित किया गया। गांव के लोग बताते हैं कि तब यहां की आबोहवा बहुत अच्छी थी, चारों ओर हरियाली थी, लेकिन फिर यहां नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL) को कोयला खोदने के लिए जमीन दे दे गई। पेड़ों को काटा गया। एनसीएल का कोयला खदान गांव से मात्र 50 मीटर की दूर है।
इसके बाद शक्तिनगर रेलवे स्टेशन से मात्र चार-पांच किलोमीटर की दूरी पर बसे 18000 आबादी वाले इस गांव के लोग जान हथेली पर लेकर यहां रह रहे हैं। यहां समस्या सिर्फ प्रदूषण और जहरीली राख, प्रदूषित पानी की ही नहीं है, बल्कि एक मानव निर्मित खतरा हमेशा इनके सिर पर रहता है। गांव के ठीक पीछे सैकड़ों फीट ऊंचा मिट्टी का पहाड़ नुमा टीला है, जिसे ओवर बर्डन कहा जाता है।
कोयला निकालने के लिए जब जमीन को खोदा जाता है तो उससे निकली मिट्टी को एक जगह जमा किया जाता है जिसे ओवर बर्डेन (ओबी) कहा जाता है।
नियम कहता है कि कोयला खदान से आबादी की दूरी कम से कम 700 मीटर होनी चाहिए। बावजूद इसके चिल्काटाड़ गांव में लोगों के रहने के लिए 500 घर बना दिए गए।
कोयला खदानों से जब एक साथ कोयले से लदे सैकड़ों डंफर और ट्रक हॉल रोड (कोयला गाड़ियों के लिए बने रास्ते) से गुजरते हैं तो गांव में धूप के समय शाम जैसा माहौल हो जाता है। चोरों ओर फ्लाई ऐश (उड़न राख) दिखती है।
वर्ष 2008 में भारी बारिश के कारण ओबी ढह गया था। जिसके बाद वर्ष 2012 में तत्कालीनडीएम सुहास एल वाई की निगरानी में गांव का सर्वे हुआ। डीएम ने इसके बाद एनसीएल और एनटीपीसी के प्रबंधकों से कहा कि यह जगह रहने लायक नहीं है। यहां रहने वाले लोग बीमार हो सकते हैं इसलिए उन्हें कहीं और विस्थापित किया जाए। अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन डीएम ने कहा कि "यह जगह रहने लायक नहीं है। यहां प्रदूषण बहुत ज्यादा है जिसकी वजह से गंभीर बीमारियों का खतरा है। यहां लगभग 500 घर हैं। ऐसे में इन्हें यहां से दूसरी जगह विस्थापित किया जाना चाहिए।"
एनसीएल और एनटीपीसी के प्रबंधकों ने इस पर सहमति जताई और कहा कि गांव के जो लोग यहां से जाने चाहते हों हमें बता दें। गांव वालों ने सहमति भी जताई लेकिन डीएम के तबादले के बाद, बात आई-गई हो गई। उन्हें आज भी यहां से विस्थापित नहीं किया जा सका।
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