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जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की बजाय महिलाओं और आदिवासियों के सशक्तिकरण पर दिया जाए ध्यान, मिलेंगे बेहतर परिणाम: आइपीएफ

जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की बजाय महिलाओं और आदिवासियों के सशक्तिकरण पर दिया जाए ध्यान, मिलेंगे बेहतर परिणाम: आइपीएफ




सोनभद्र। जनसंख्या नियंत्रण कानून के प्रस्ताव के मसले पर ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट में केंद्र और प्रदेश सरकार पर निशाना साधते हुए उनकी नीयत पर सवाल उठाए हैं। राष्ट्रीय प्रवक्ता आरएस दारापुरी ने जारी बयान में कहा कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के ठीक मौके पर इस नीति की घोषणा से स्पष्ट होता है कि इसमें चुनावी चालबाजी के साथ-साथ डंडा के बल पर समाज को हाकंने की नीति दिखती है।

     इस समय सूबे में कई ज्वंलत मसाले हैं जिन पर ध्यान दिया जाना ज्यादा जरूरी है।  मसलन कोरोना महामारी से निपटने के लिए सक्रिय स्वास्थ्य केन्द्रों को मजबूत करना, भुखमरी और महंगाई से पीड़ित नागरिकों को सरकारी और जंगल की अतिरिक्त भूमि का आवंटन, ग्रामीण अंचल में मनरेगा को मजबूत करते हुए शहरों तक मनरेगा या मनरेगा जैसी योजना का विस्तार, निजी माफियाओं के हाथ से शिक्षा मुक्ति और हर नागरिक के शिक्षा के अधिकार की गारंटी, मजदूरों और कर्मचारियों को जिंदा रहने के लिए न्यूनतम वेतन, प्रदेश में खाली पड़े 5 लाख पदों पर भर्ती, काले कानूनों का खात्मा और लोकतंत्र के प्राधिकार की स्थापना सर्वोपरि चल रहे किसान आंदोलन के सी-2 के आधार पर एमएसपी का कानून लागू करना और गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान करना शामिल है।

      जनसंख्या नीति के मसले पर कहा कि उत्तर प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार अन्य की अपेक्षा सबसे अधिक है। वहीं आबादी के हिसाब से सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी नगण्य है और इस जनसंख्या नीति को अगर आधार मान लिया जाए तो नौकरी, पदोन्नति, वेतन वृद्धि, चिकित्सा, आवास आदि जैसे लाभ से वे वंचित हो जायेंगें। अभी जो वनाधिकार कानून है उसकी भावना के अनुरूप मायावती, मुलायम, अखिलेश और अब भाजपा की सरकारों ने आदिवासियों को जमीन पर अधिकार देने की जगह जमीन से उन्हें बेदखल किया। अवैध खनन माफियाओं द्वारा जारी है। उनकी जमीनों पर भूमाफियाओं ने कब्जा किया हुआ है। हाल के वर्षो में हुआ उभ्भा कांड इसका बहुत बड़ा प्रमाण है।

      यह जरूरी नहीं कि आबादी विकास विरोधी ही हो बशर्ते उत्पादन प्रक्रिया में उसका बेहतर नियोजन किया जा सके। बेहतर तरीका यह है कि ऊपर से कानून बनाने की जगह महिलाओं और आदिवासियों के सशक्तिकरण पर जोर बढ़ाया जाए, उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर लाया जाए उनको नागरिक अधिकार दिया जाए तो वह खुद ही परिवार नियोजन करेंगे और परिवार छोटा रखेंगे। क्योंकि  अधिकांश मध्यवर्गीय परिवारों को देखा जाए तो महिलाएं एक बच्चे के ही पक्ष में दिखती है। सरकार की गलत नीतियों, कोरोना और महंगाई के कारण लोग गरीबी रेखा के नीचे बड़े पैमाने पर गए है। उन्हें कैसे आगे लाया जाए, उत्तर प्रदेश में नागरिकों के जानमाल की रक्षा की जाए, रोजगार की गारंटी की जाए जैसे प्रदेश के प्रमुख मुद्दों पर उत्तर प्रदेश सरकार को अपना रूख साफ करना चाहिए। 

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